महाभारतम् — 12.297.18
Original
Segmented
विरिक्तस्य यथा सम्यग् घृतम् भवति भेषजम् तथा निर्हृ-दोषस्य प्रेत्य धर्मः सुख-आवहः
Analysis
| Word | Lemma | Parse |
|---|---|---|
| विरिक्तस्य | विरिच् | pos=va,g=m,c=6,n=s,f=part |
| यथा | यथा | pos=i |
| सम्यग् | सम्यक् | pos=i |
| घृतम् | घृत | pos=n,g=n,c=1,n=s |
| भवति | भू | pos=v,p=3,n=s,l=lat |
| भेषजम् | भेषज | pos=n,g=n,c=1,n=s |
| तथा | तथा | pos=i |
| निर्हृ | निर्हृ | pos=va,comp=y,f=part |
| दोषस्य | दोष | pos=n,g=m,c=6,n=s |
| प्रेत्य | प्रे | pos=vi |
| धर्मः | धर्म | pos=n,g=m,c=1,n=s |
| सुख | सुख | pos=n,comp=y |
| आवहः | आवह | pos=a,g=m,c=1,n=s |