महाभारतम् — 3.82.113
Original
Segmented
भरतस्य आश्रमम् गत्वा सर्व-पाप-प्रमोचनम् कौशिकीम् तत्र सेवेत महापातक-नाशिन् राजसूयस्य यज्ञस्य फलम् प्राप्नोति मानवः
Analysis
| Word | Lemma | Parse |
|---|---|---|
| भरतस्य | भरत | pos=n,g=m,c=6,n=s |
| आश्रमम् | आश्रम | pos=n,g=m,c=2,n=s |
| गत्वा | गम् | pos=vi |
| सर्व | सर्व | pos=n,comp=y |
| पाप | पाप | pos=n,comp=y |
| प्रमोचनम् | प्रमोचन | pos=a,g=m,c=2,n=s |
| कौशिकीम् | कौशिकी | pos=n,g=f,c=2,n=s |
| तत्र | तत्र | pos=i |
| सेवेत | सेव् | pos=v,p=3,n=s,l=vidhilin |
| महापातक | महापातक | pos=n,comp=y |
| नाशिन् | नाशिन् | pos=a,g=f,c=2,n=s |
| राजसूयस्य | राजसूय | pos=n,g=m,c=6,n=s |
| यज्ञस्य | यज्ञ | pos=n,g=m,c=6,n=s |
| फलम् | फल | pos=n,g=n,c=2,n=s |
| प्राप्नोति | प्राप् | pos=v,p=3,n=s,l=lat |
| मानवः | मानव | pos=n,g=m,c=1,n=s |