शतकत्रयम् — 1.87
Original
Segmented
छिन्नो ऽपि रोहति तरुः क्षीणो ऽप्य् उपचीयते पुनः चन्द्रः इति विमृशन्तः सन्तः संतप्यन्ते न दुःखेषु
Analysis
| Word | Lemma | Parse |
|---|---|---|
| छिन्नो | छिद् | pos=va,g=m,c=1,n=s,f=part |
| ऽपि | अपि | pos=i |
| रोहति | रुह् | pos=v,p=3,n=s,l=lat |
| तरुः | तरु | pos=n,g=m,c=1,n=s |
| क्षीणो | क्षि | pos=va,g=m,c=1,n=s,f=part |
| ऽप्य् | अपि | pos=i |
| उपचीयते | उपचि | pos=v,p=3,n=s,l=lat |
| पुनः | पुनर् | pos=i |
| चन्द्रः | चन्द्र | pos=n,g=m,c=1,n=s |
| इति | इति | pos=i |
| विमृशन्तः | विमृश् | pos=va,g=m,c=1,n=p,f=part |
| सन्तः | सत् | pos=a,g=m,c=1,n=p |
| संतप्यन्ते | संतप् | pos=v,p=3,n=p,l=lat |
| न | न | pos=i |
| दुःखेषु | दुःख | pos=n,g=n,c=7,n=p |